Feb 4, 2013

अभी भी याद है तुमको
पुरानी बान की खटिया
जिसके तान तुमको खीचने
परते थे दर हफ्ते
वो टेबल फ़ैन सिन्नी का
बरा सेलेब्रिटी सा था
बरी जद्दोजहद रहती थी
उसके पास सोने की
उमस होती ती थी कमरे मे
जुलाइ की दोपहरी मे
मगर कुछ नींद एसी थी
की जालिम टूटती ना थी
वो मोहरी खोल कर लंबी
करी जाती थी पतलूने
वो काला जूता बाटा का
जो साला टूटता ना था
एक ही थान से काटी
कमीजें सारे बच्चों की
वो फॅशन सेन्स एसा था
की ज़्यादा सोचना ना था
बहोत कम्बख़त था
छत पर लगा
टी वी का एंटेना
जो सनडे फिल्म के टाइम
पे हिल ही जाया करता था
कि पीली रोशनी मे भी
हमे दिखता था सब क्लियर
सेलेबस धीरे धीरे पूरा
हो ही जाया करता था
कई नाज़ुक से मोरो पर
दिए धोखे हमे उसने
उतर जाती थी जब देखो
चैन उस लाल साइकल की
मैं बरबस मुस्कुरा उठता हूँ
जब भी याद करता हूँ
थोरी कठिनाइयाँ तो थी
मगर ज़्यादा बरी ना थी
कभी होती थी हरारत
मगर बीमारियाँ ना थी
चीज़ें इतनी कम थी
की जगह खाली ही रहती थी
उम्मीदें भर लो चाहे जितनी
अपने घर के कोनो मे
अभी समान से है घर भरा
पर एक खामोशी है
हमारी नींद मे सपने नही है
बस बेहोशी है
............................................................... p. s. DEDICATED TO ALL DESIES