बात करने की
अकल
हमको
अभी
आई
नही
गुफ्तगू होती रही
पर
बात
बन
पाई
नही
शहर-ए-कारोबार
मे
घाटा
ही
बस
होता
रहा
नब्ज़ धंधे की
पकड़
हमने
कभी
पाई
नही
लोग तो कहते
रहे
है
आप
मे
वो
बात
पर
हमने ही शायद
कभी
तक़दीर
आज़माई
नही
यों नही क़ि जानते ना थे क़ि होगा हॅश्र ये
दिल के आगे फिर से लेकिन अपनी चल पाई नही
सब तरफ है शोर ,मजमा ,महफिलें औ क़हक़हे
मेरे हिस्से मे क्या थोड़ी सी भी तन्हाई नही