तुम अधूरा स्वप्न बनकर
कब तलक छलते
रहोगे
पास होकेर भी ह्रिद्य
के
दूर  यो  चलते  रहोगे
शाम के सूरज
के रंग से
संग के कुछ
पल सुनहले
ताकना वो एकटक
इस
रूप  को  तेरे  रुपहले
हाथ  हाथो  मे 
लिए
बिन कुछ कहे
देना भरोसा
मेरी  हर
 एक
 माँग
 पर
वो  मुस्कुरा  देना  हमेशा
जानकर अनजान
 बनकर
देखती  आँखे
 तुम्हारी
है ये मेरी
कल्पना सब
सत्य से पर
लगती प्यारी
सत्य तुम हो,
सत्य मैं हू
स्वप्न फिर यह,
सत्य तो है
सृजन तक पहुचे
ना पहुचे
स्वप्न का अस्तित्व
तो है
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