कितना प्यारा सा है तू बिलकुल अपनी माँ सा है तू
हृदयों को स्पंदित करती वो कोमल सी भाषा है तू
तू प्रणय की अल्पना है
या सृजन की कल्पना है
व्योम तल पर श्रांत होकर
अस्त से होते रवि की
भोर की परिकल्पना है
मेरी नश्वरता को झुठलाते नवजीवन की आशा है तू
हृदयों को स्पंदित करती वो कोमल सी भाषा है तू
सूछ्म, कोमल पंखरी से
मृदुल अंगो की चपलता
रक्तिम, सलोने अधर युग्म
की छवि को पूर्ण करती
धवल रश्मि की प्रकटता
कण कण में है व्यापत रचयिता देता यही दिलासा है तू
हृदयों को स्पंदित करती वो कोमल सी भाषा है तू
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