अभी अभी मेरी ज़बान पर स्वाद नमक सा आया है
क्या तेरी आँखों ने फिर कोई अश्क बहाया है
मेरे किराये के घर के छज्जे चाँद नहीं आता
तुम्ही बताओ किसने उसको ये बर्ताव सिखाया है
बेचारे माँ को लगता है अब कुछ गलत नहीं होगा
क्या काले टीके से कोई दुनिया से बच पाया है
कभी शिवाले की घंटी से मेरी आँखे खुलती थी
इस बार जागरण को चंदे से स्पीकर लगवाया है
शायद खुदा आजकल मेरे आस पास नहीं रहता
तभी इबादत को उसने मस्जिद में बुलवाया है
माना दुनिया के दस्तूर निभाना मुझे नहीं आता
पर बोलो क्या तुमने भी दिल का दस्तूर निभाया है
अब आओ तो तुमसे मिलकर हाथ मिलाकर मै निकलूँ
खड़े खड़े यूं इन्तजार में कितना वक़्त गंवाया है
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