Mar 22, 2012

बीत गयी रात

आज की सुबह बिस्तर को यूं ही रहने दो
तमाम रात तो जगते हुए बिताई है.
इसमे बसती है तेरे नर्म बदन की खुशबू
इसमे बाकी अभी भी प्यार की गरमाई है
उजली चादर की इक इक सलवट में
बीती हुई रात की एक इक अंगराई है
परा है होके जुदा एक जुल्फ का कतरा
मेरे एक गाल पे काजल की रोशनाई है
जो बिंदी जाके चिपकी हुई है तकिये से
जूनून-ए-अंजुमन से लगता है शरमाई है
ये जो चूरी मिली है टूटी हुई सिरहाने
लगता है की किसी सैलाब से टकराई है
मेरे लबों पे तेरे सुर्ख लबों की लज्ज़त
अब भी फेरूँ जुबां तो थोरी सी मिठाई है
मुझको तो शिकवा है इस नामुराद सूरज से
जो हमसे रात ये इसने हंसी चुराई है.

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