कुछ दिनो
पहले
एक
शादी
मे
जाना
पड़ा|
शादी के पूजा
पाठ के
बीच
पंडित
जी की
किसी
बात
पर
लड़के के
बाप
ने
बड़े
ज़ोर
से
ऐलान
सा
किया
की…..भाई भगवान
ने
हमे
बेटी
नही
दी | हम
तो बहू को
बेटी की
तरह
रखेंगे|
ये
सुनकर
बड़ी
मुश्किल
से
मैं
खुद
को
ये
पूछने से
रोक
पाया
की
अगर
बेटी
दे
दी होती
उपरवाले
ने
तो
बहू
को
किसकी
तरह
रखते साब| ये बड़ा
ही
कामन
सा
डाइलॉग
है
जो
अक्सर
सुनने
को
मिल
जाता
है|
यार मुझे
ये
समझ नही
आता की ये तो
सबसे
स्वाभाविक
बात
है| यही आपको करना
चाहिए
और
यही
सब
आप से
उम्मीद
रखते है | (व्यवहार मे
क्या
होता
है वो
एक
अलग
कहानी
है)
तो
इसमे
ऐसा
क्या
खास
करने
वाले हो
आप
जो
इतना
ज़ोर
दार ऐलान कर रहे
हो | (जैसे कोई
ये
भी
कहता
है
की
भाई
हम
तो
बेटी
की तरह
नही
रख
पाएँगे)…
अति स्वाभाविक बात की उद्घोषणा
की
क्या
ज़रूरत|
बस वहा बैठे
लोगों
को ज़बरदस्ती
ये जतलाना
की
हमारा
हृदय
कितना
महान
और
बड़ा
है|
भाई
थोड़ा
इंतेज़ार
कर
लो
लोगों
को
मौका
दो
की
वो
करें
आपकी
तारीफ़
इतनी
भी
क्या
जल्दी
की
खुद
ही
शुरू
हो
गये|
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